एक अजीब तजूरबा मेरी आँखो का होने वाला था............|

एक अजीब तजूरबा मेरी आँखो का होने वाला था,
दिनभर हारा मै रात ख्वाब में जीतने वाला था।

कभी मुलाकात नही हुई मेरी, शहर से तेरे,
जब भी मै उठा तेरा शहर सोने वाला था।।

ये सोच सोच के अब हँसी आती है मुझको,
शुरु-ए-इश्क मे कितना मै रोने वाला था।।

बदल दी धुन महफिल-ए-दुनिया कि तुने,
वरना हर एक शक्स मेरा होने वाला था।।

अकेले उस सन्नाटे में एक हँसी सुनाई दी मुझको,
मै तो उसकी याद में पलके भिगोने वाला था।।

अच्छा हुआ जला दिया मुझको नफरत कि आग ने,
वरना ये इश्क तो मुझको दफन करने वाला था।।

आज भी जिंदा हुँ एक याद बन उसके जहन में,
वरना इश्क का दुश्मन तो उसे भी मिटाने वाला था।।

लोगो के दिलो में छोड़ गया मै परछाई अपनी,
वरना इस भींड भरी दुनिया मे मुझे कौन जानने वाला था।।


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