वो पहला School और वो Teachers...

     ये कहानी उत्तराखंड के छोटे से जिले के छोटी सी तहसील जैंती में शुरू हुई, दरअसल जिस समय मैं पहली बार जैंती गया था, उस वक्त यहां कोई तहसील नहीं थी, बाजार कहने को कुछ छोटी-छोटी दुकानें और एक छोटा सा स्टेशन था, जहां सिर्फ एक "थान सिंह जी" की गाड़ी खड़ी रहती थी, यह एक मात्र साधन था जो जैंती को हल्द्वानी शहर और हल्द्वानी शहर को जैंती से जोड़ता था। जैंती कस्बे का विकास 2002-2003 से ही होना शुरू हुआ था, कुछ लोग बताते हैं कुछ समय पहले तक मोटर मार्ग सुविधा भी उपलब्ध नहीं थी यहां। शायद हम पहले ऐसे शख्स थे जो गांव से शहर ना जाकर शहर से गांव आते थे।

    मैं और मेरे दो भाई (सोनू और अजय), हम 2002 में हल्द्वानी से अपने गांव (कुन्ज) आये। और अब आगे की पढ़ाई हमें यही करनी थी, कुन्ज गांव में एक प्राथमिक स्कूल था, जहां मात्र एक अध्यापिका "मुन्नी मैम" थी। लेकिन हमने कुन्ज से 3-4 किमी दूर जैंती के पावनेश्वर  बाल विद्या मंदिर स्कूल में प्रवेश लिया, मैंने कक्षा 4 से 8 तक की शिक्षा यही से ली, स्कूल के प्रधानाचार्य श्री सुधीर गुरुरानी थे, और स्कूल में बच्चों की संख्या मात्र 100 के करीब थी। यहां श्री शिवराज सिंह बिष्ट जी, देवेन्द्र सर, दीपा मैम, कविता मैम, गीता मैम, मीरा मैम, विपिन सर और राजू सर कई अध्यापक व अध्यापिका रहें। शिवराज सर का मेरे जीवन में बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है उन्हीं की बदौलत मैंने गणित को समझा है।

    पावनेश्वर में सबसे पहले मैं, रजनीश कुमार जोशी से मिला, मेरे परम मित्र जो अब योगाचार्य रजनीश है, हमने एक साथ 4 से 8 तक सफर तय किया है। हम कक्षा 4 में मात्र 4 बच्चे थे,  मैं, रजनीश, कमल और सौरभ। कक्षा 5 में भी सिर्फ 2 बच्चे थे एक मेरा बड़ा भाई और एक गीता। तो कुल मिलाकर हम कक्षा 4-5 में मात्र 6 बच्चे थे तो दोनों कक्षाएं साथ बैठा करती थी। धीरे-धीरे समय गुजरने लगा बच्चों की संख्या बढ़ने लगी और अब कक्षा 5-6 अलग अलग चलने लगी।

    रोजाना सुबह स्कूल के मैदान में हम सभी बच्चे प्रार्थना को एकत्र होते थे, उस वक्त हमारे स्कूल के पास ही दो स्कूल और थे, एक राजकीय बालिका इंटर कालेज और एक अपना सर्वोदय इंटर कालेज। और एक यही पर महाविद्यालय था जहां आए दिन नारेबाजी चलते रहती थी। हालांकि कुछ समय बाद बालिका इंटर कालेज और महाविद्यालय वहां से कहीं और स्थापित कर दिये गये।

    पावनेश्वर में जब मैंने आठवीं कक्षा पास कर 9 वी में गया तो मेरा बड़ा भाई उस वक्त 10 वीं में पढ़ रहा था, वो 9-10 बच्चे थे जो पावनेश्वर से हाईस्कूल कर रहे थे, लेकिन कक्षा 9 में मैं अकेला रह गया था, जिस कारण मुझे आधे सत्र से स्कूल से जाना पडा, अब मेरे पास सर्वोदय इंटर कालेज जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं था, 2008 से मेरा सर्वोदय का सफर शुरू हुआ। मेरे दोनों भाई अब भी पावनेश्वर में ही पढ़ रहे थे, मेरा छोटा भाई अजय अभी 4-5 वीं कक्षा में पढ़ रहा था।

    पावनेश्वर से जाने के बाद सर्वोदय का सफर काफी अच्छा और यादगार रहा। जब मै पहली बार फेल हुआ तो दुसरे साल मुझे पढ़ाने वाले शिवराज सिंह बिष्ट जी थे। जिनकी मेहनत से मुझ जैसा मुर्ख भी गणित बनाना सीख गया। वो हमेशा एक अच्छे अध्यापक रहे। 

    कहते हैं ना आप चाहें स्कूल से चले जाए लेकिन स्कूल आपके जहन से नहीं जाता वही मेरे साथ हुआ है। मैनें कई स्कूल बदले हैं लेकिन सबकी यादें अब भी जहन में है जैसे कल ही की बात हो, अगर बचपन से बात करु तो पहला स्कूल जो मुझे याद है वो हिमालय सीनियर सेकेंडरी स्कूल हल्द्वानी और फिर पावनेश्वर बाल विद्या मंदिर स्कूल और फिर सबसे खास सर्वोदय इंटर कालेज था। उसके बाद कई कालेज में पढ़ा। जिनका जिक्र आगे को किया जायेगा।


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